मनुष्य के जीवन में सुख-दुःख क्यों आता है?
सुख इतनी सासामान्य सी बात लगती है कि कोई उसके विषय में जानना ही नही चाहता कि उसे सुख क्यों मिल रहा है? लेकिन दुःख इतनी असामान्य घटना है कि संसार का हर इंसान यह जानना चाहता है कि उसे दुःख क्यों मिल रहा है?
दुनिया में कोई ऐसा इंसान नही जो यह नही जानता कि सुख और दुःख क्यों मिलते है? लेकिन इन्ससान उस बात कोई पूर्णता अनदेखा करना चाहता है और अहंकारवश ऐसा मानता है कि सुख उसकी महनत का फल है और दुःख दूसरों की।
एक बहुत पुरानी बात है सुख-दुःख के विषय में, जिस पर कुछ लोग पूरी तरह विश्वास करते है और कुछ लोग पूर्णता नकारते है। लेकिन किसी भी बात को नकारने से उसकी सच्चाई नही बदल जाती। धार्मिक किताबों में ऐसा लिखा है कि कर्म का फल इंसान को भोगना ही पड़ता है। अच्छे कर्म का फल सुख और बुरे कर्म का फल दुःख।
यह बात इतनी सच है कि इंसान का कोई भी तर्क इस बात को झूठा नही ठहरा सका है।
कुछ लोग कहते है कि जब तक हम सबूत नही देख लेते तब तक हम नही मानते। लेकिन यह विषय इंसान कि भावनाओं से जुदा है जिस बारे में इंसान झूठ बोल देता है। किसी इंसान से कहा जाये कि आप किसी का भला करो और अपनी भावनाएं बताओ कैसा महसूस कर रहे हो? अगर वह सच बोलेगा तो उसे अच्छा ही महसूस होगा। लेकिन अगर वः अपनी भावनाओ को लेकर झूठ कह दे। तब? सवाल आएगा ऐसा क्यों करेगा कोई? जवाब है अपने अहंकार को बचाने के लिए बहस जितने के लिए।
इस बात में बिलकुल भी शक नही कि जब आप कोई अच्छा काम करते है तब जो ख़ुशी मिलती है वो अलग ही होती है लेकिन जब आप कोई बुरा काम करते है तब आपको बुरा महसूस होता है। लेकिन इंसान का अहंकार उस बुरा लगने वाली भावना को छुपा देता है जिससे उसे यह अहसास ज्यादा देर नही रह पता।
जीवन का रहस्य बहुत साधारण है सुख आपको आपके अच्छे कर्मों की वजह से मिल रहे है और दुःख आपको आपके बुरे कर्मों की वजह से। अच्छे कर्म का अर्थ है जब आप किसी को ख़ुशी देते हो, किसी की मदद करते हो और बुरा कर्म वो जिसकी वजह से किसी को दुःख पहुंचे।
अब हर कर्म को यहाँ बताया नही जा सकता कि कौन सा कर्म अच्छा है और कौन सा कर्म बुरा है? इसके लिए इंसान को अपना विवेक का प्रयोग करना पड़ेगा। आपके मानने या ना मानने से नियम नही बदल जाते। यह स्रष्टि नियमों से ही चलती है। आग से इंसान जलता है यह नियम है लेकिन अगर कोई कहे मैं नही मानता कि ऐसा होता है, तो उसके ना मानने से कोई फर्क नही पड़ता। साधारण परिस्थिति में यह नियम अटल है। आपका मानना या ना मानना कोई मायने नही रखता।
वैसे अगर देखा जाये तो एक समझदार इंसान अपने दुःख से मुक्त होना चाहिए फिर चाहे उसे उम्मीद की एक किरन ही क्यों ना दिख रही हो। लेकिन एक मुर्ख इंसान बहस में पड़ेगा। जहाँ इंसान को अपने दुःख को दूर करने का मौका मिल रहा हो और वो अपने दुःख को दूर करने की वजाय बहस करने लगे उसे मुर्ख नही तो क्या कहा जायेगा?
अब जहाँ कर्मफल की बात आती है तो इस दुनिया के नियम बनाने वाले का भी जिक्र होना चाहिए। भगवान् या यह कह सकते है जिसने स्रष्टि बनाई है। ध्यान दीजिये यहाँ स्रष्टि का जिक्र किया है धरती यानि पृथ्वी का नही। तो यहाँ किसी धर्म का जिक्र नही है यहाँ जिक्र परमात्मा,GOD का है। जो सच है। जब चीज़ दिख रही है तो उसे बनाने वाला भी होगा। बस ठीक ऐसा ही यहाँ भी है।
अगर आप यह सोच नही सकते कि आपको सुख क्यों मिल रहा है? तो यह भी सोचने की जरूरत नही कि दुःख क्यों मिल रहा है? सुख मिलने पर शुक्रिया नही करने वाले को दुःख मिलने पर शिकायत करने का भी कोई हक नही। बात कड़वी लग सकती है लेकिन सच तो है।
सुख मिलने पर ईश्वर,परमात्मा,GOD का शुक्रिया कीजिये जीवन में दुःख क्यों आता है? यह सवाल पूछने की जरूरत नही पड़ेगी।
धन्यवाद।
-योगेन्द्र सिंह
© Yogendra Singh | 2021
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Bahut sunder kahani
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर कहानी है आपने कहानी के माध्यम से इंसान को एक बेहतर जिंदगी जीने के लिए रास्ता दिखाया है आपका बहुत-बहुत धन्यवाद